होठों की नमीं से उमड़ता इज़हार
लफ़्ज़ों की पहेलियों में छिपा है इक़रार
पर कारे बादलों में क़ैद चाँद करे इंकार
बस इसी क़शमक़श में, जनाब, बरक़रार है प्यार
Husn-e-Haqiqi
— पुखी उर्फ़ पाखी
03rd July, 2020
Gluing cybersecurity with geopolitics
होठों की नमीं से उमड़ता इज़हार
लफ़्ज़ों की पहेलियों में छिपा है इक़रार
पर कारे बादलों में क़ैद चाँद करे इंकार
बस इसी क़शमक़श में, जनाब, बरक़रार है प्यार
Husn-e-Haqiqi
— पुखी उर्फ़ पाखी
03rd July, 2020
सोच रहा है राहगीर
किस तरफ का है ये मोड़?
इक शहर तो है नज़र में
जिसके बाशिंदे गए छोड़
#LockDown
— पुखी उर्फ़ पाखी
12th April, 2020
तमाशबीन भी तुम?
और क़िरदार भी तुम्हारा?
मुखौटा भी तुम सा
मैंने चढ़ा लिया दोबारा
…इस शोर-गुल
इस चहल-पहल
में ना तुम तुम हो
न मैं मैं हूँ
Plato’s allegory of the cave.
— पुखी उर्फ़ पाखी
13th November, 2019
इतनी बड़ी क़ायनात
हमारा शामियाना कितना छोटा
दौड़ तो है जन्नत की
पर दुनिया के लिए तू है खोटा
— पुखी उर्फ़ पाखी
17th June, 2020
जो पास हैं
वो दरअसल हैं कितने दूर
सौ लफ्ज़ लगते हैं बयां करने में
एक लफ्ज़ में सब चूर-चूर
कैसा फ़लसफ़ा है ये ज़िन्दगी का
आख़िर क्यों हूँ मैं इतना मजबूर?
— पुखी उर्फ़ पाखी
12th June, 2020
वोह थे तो इक रेत की लकीर
पर गुमनाम हवा उन्हें याद रखेगी
— पुखी उर्फ़ पाखी
#SafdarHashmi
12th April, 2020
दाने चुगता परिंदा
जैसे पल गिन रहा है
असीम नीला आसमां
जैसे वक़्त का पैमाना हो
— पुखी उर्फ़ पाखी
19th June, 2020